चलो खाली बैठे है
तो कुछ कह ही देते है ।
21 दिन की ही तो बात है,
अपने लिए न सही,
अपनो के लिए तो अंदर रह ही लेते है ।
तो क्या हुआ अगर एक और मुसीबत आयी है,
क्या कभी हस्ते हस्ते झेलना नहीं सीखा ?
बचपन में जब चोट लगती थी,
तो बिना रोये खुद तो बड़ा इंसान कहते थे,
क्या नहीं हो सकता आज भी वही जीने का सलीका ?
आजकल वैसे ही सुबह से रात हो जाती है,
लेकिन कही जाने के लिए ही नहीं होता ।
बाहर जा के घर वापसी थोड़ी खतरनाक हो सकती है,
क्या इतना सा सच तुम्हारे लिए कड़वा नही होता? .
तुम तो फिर भी घर हो, सुरक्षित हो ।
लोगों ने तो अभी भी अपनी मंज़िलो से फासले रखे हुए है ।
उनके लिए थोड़ी चिंता होती है,
घर तो कुछ नहीं, कुछ लोग तो खाने से भी हारे हुए है ।
– © Himanshu Gulati ( @a_rookie_poet )
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